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About the Man who inspired us- Pt. Singhasan Tiwari Ji 'Kant'

पूर्वांचल के सुप्रसिद्ध प्राचीन पत्रकार, हिंदी सेवक एवं साहित्यकार श्री सिंहासन तिवारी का जन्म देवरिया जनपद के ग्राम हरैया, पो. तरकुलवा में ११ जून सन् १९१५ में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा राष्ट्रिय शिक्षण संस्थान बसन्तपुर धुसी में हुई। ब्रम्हिभूत परमहंस बाबा राघव दास जी के व्यक्तित्व एवं प्रेरणा से प्रभावित होकर इन्होने आजन्म हिंदी सेवा का व्रत ले लिया और श्री परहंसाश्रम  बरहज में आकर राष्ट्रभाषा महाविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। १९३७ई. से जीवन पर्यन्त उक्त महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर सेवारत रहे। अनेक साहित्यिक, सामाजिक एवं शिक्षण संस्थाओं के प्रतिष्ठित सदस्य थे। विश्ववंद्य महात्मा गांधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन परमहंस बाबा राघव दास और पूज्य विनोबा जी इनके प्रेरणास्रोत रहे हैं।

"सिंहासन जी शुभनाम एक हिंदी-जग के उद्धारक का।
साहित्य कला के अमर पूत स्वातन्त्र्य समर संचालक का।
श्री ‘कान्त’ यहाँ पर्याय बने जन वाणी के उन्नायक का।
सर्वोदय के आधार रूप बरहज के भाग्य विधायक का।
इस तप:पूत कवि पत्रकार का गुण गौरव सब गाते हैं।
पूर्वांचल के नर रत्न पुरूष पर श्रद्धा-पुष्प चढ़ाते हैं।। "

-डा० अर्जुन तिवारी

योग्यता : एम.ए. साहित्य रत्न

(नाटक) १९४० में अभिनय के समय ब्रिटिश सरकार द्वारा जप्त, मानसी(कविता संग्रह) बाबा राघव दास (जीवनी)। अपने किशोरावस्था में ही पूज्य बाबा राघव दास जी के सम्पर्क में आने के साथ ही राष्ट्र व समाज सेवा इनके जीवन का उद्देश्य  हो गया। ब्रिटिश हुकुमत के दौरान जब बाबू शिव प्रसाद गुप्त द्वारा स्थापित ‘आज’ समाचार पत्र के प्रचार- प्रसार, पठन पाठन पर अंग्रेजो की दृष्टि लगी थी, कान्त जी ने पत्रकारिता के माध्यम से जन जन में राष्ट्रीय चेतना की चिंगारी जगाने में सहयोग दिया तथा अंग्रेजो के कोपभाजन बने व यातनायें झेली। १९३५ से ६६ वर्ष तक दैनिक ‘आज’ की अनवरत सेवा करते रहे तथा बाबू शिव प्रसाद गुप्त एवं परिवार के सम्मानित सदस्यो पराड़कर जी, पं. कमला पति त्रिपाठी, खाडिलकर जी, लक्ष्मीशंकर व्यास आदि सभी के स्नेह भाजन बने।

इस हिंदी सेवक ने श्री राष्ट्रभाषा महाविद्यालय द्वारा संचालित हिंदी साहित्य सम्मेलन की परीक्षाओं  के माध्यम से हजारो गैर हिन्दी भाषी विद्यार्थियों में हिन्दी का प्रचार प्रसार किया। यह संस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की रही है। राष्ट्रभाषा  का आजीवन व्रती सेवा पथ में १४ सितम्बर २००१ को हिंदी दिवस समारोह  प्रातः से देर रात तक ( विगत एक माह से अस्वस्थ होते हुए भी ) उत्साह पूर्वक मनाने के उपरान्त निश्चिन्त भाव से चिर निद्रा में सो गये।

स्व. प. श्री सिंहासन तिवारी कांत जी की प्रकाशित/ अप्रकाशित रचनाये –

प्रकाशित-

  1. शांति  (खण्डकाव्य) १९३९ | Shanti (Khandkavya) 1939
  2. युगान्तर ( नाटक) १९४१ (अंग्रेजी सरकार द्वारा जप्त) | Yugaantar(Drama)1941 (Confiscated by British Government)
  3. निर्वाण भूमि (ख्ण्ड्काव्य) १९५६ | Nirvaan Bhumi(Khandkavya) 1956
  4. तुलसी दल (महाकाव्य) १९७४ | Tulsi Dal (Mahakavya) 1947
  5. सरयू संकीर्तन महिमा (खण्डकाव्य)१९७८ | Sarayu Sankirtan Mahima(1978)
  6. दुर्गा चरित्र दर्पण (खण्डकाव्य)१९८३ | Durga Charitra Darpan (Khandkavya) 1983
  7. पंचामृत ( काव्यसंग्रह ) १९८० | Panchamrita(Poetry) 1980
  8. राष्ट्रभाषा के २० वर्ष। | Rashtrabhasha ke 20 warsh
  9. देव दूत परमहंस बाबा राघव दास (गद्य- जीवनी) १९५६ | Devdoot Paramhans Baba Raghav Das(Prose & Biography) 1956
  10. परम हंस सत्यव्रत जी महाराज (गद्य- जीवनी) १९६१ | Param Hans Satyavrat ji Maharaj(Prose & Biography) 1961

अ‍प्रकाशित-

  1. हिंदी साहित्य का सरल अध्यन (समीक्षा  ) | Hindi Sahitya ka Saral Adhyan (Review)
  2. साक्षरता का वरदान (नाटक) | Sakchharta ka Wardaan(Drama)
  3. जीवन ज्योति (निबंध संग्रह) | Jeevan Jyoti (Essay Collection)
  4. पंच गव्य (कहानी संग्रह) | Panchgavya (Stories Collection)
  5. मानसी (कविता संग्रह ) | Maansi(Poetry Collection)
  6. दरिद्र नारायण (खण्ड काव्य ) | Daridra Narayan(Khandkavya)

प्राकथन

भारतीय संस्कृति के अनुसार ७५ वर्ष की आयु पूरी कर लेने के बाद व्यक्ति ऋषि तुल्य , देव पुरुष हो जाता है। ८६ वर्ष पूरी कर लेने के पश्चात् पूर्वांचल के गांधी बाबा राघव दास की आत्मा पं. सिंहासन तिवारी का स्वर्गारोहण अपने में एक ऐतिहासिक तथ्य हो गया है। ऐतिहासिक तथ्य इसलिए कि जो जिंदगी भर राष्ट्रभाषा राजभाषा हिन्दी की सेवा करता रहा, उसी ने हिन्दी दिवस पर ही अपने प्राण को छोड़ा ।  विनोबा भावे ने दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया । पूज्य कान्त जी ने हिन्दी माँ के चरणो पर अपने को समर्पित किया।

हम पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग अपने यशस्वी कर्मठ पुरुषों को उतना सम्मान नहीं दे पाते जितना वान्छित है। श्री सिंहासन तिवारी जी हिंदी भाषा के अद्वितीय अप्रतिम सेवक थे। साहित्य के महारथी थे, पूर्वांचल में चेतना की लहर जगाने वाले  थे। उनके जीवन का एक-एक पल अनुकरणीय है। अपनी रचना द्वारा वे अजर-अमर हो चुके हैं-


रहता सखुन से नाम कयामत तलग ए ज़ौक़ ।
औलाद से तो बस यही दो पुश्त चार पुश्त ।।


महाकवि तुलसी , सूर , प्रसाद , निराला की भांति कविवर अमर हैं।  इसमे कोई विवाद नहीं।पूज्य कान्त  के व्यक्तित्व कृतित्व से पूर्वांचल की युवा पीढ़ी प्रेरित होगी।, साहित्य सेवियों को प्रकाश मिलेगा तथा समाज सेवियों का मार्ग प्रस्त होगा।

डा० अर्जुन तिवारी
अध्यक्ष
पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग
महात्मा गांधी काशी विघापीठ
वाराणसी